चींटी ( कविता )
कविता। चीटियां अंडे उठाकर जा रही हैं, और चिडियाँ नीड को चारा दबाए, था न पर बछड़ा रँभाने लग गया है, टकटकी सुने विजन पथ पर लगाए, थाम आँचल, थका बालक रो उठा है, है खड़ी माँ शीश का गट्ठर गिराए, बाँह दो चुमकारती-सी बढ़ रही, साँझ को कह दो, बुझे दीपक जलाए। शोर, जैनों में छिपाने के लिए अब, शोर, माँ की गोद जाने के लिए अब, शोर, घर-घर नींद रानी के लिए अब, शोर, परियों की कहानी के लिए अब। एक मैं ही हूँ कि मेरी साँस चुप है, एक मेरे दीप में...