हिन्दी की कविता।
लोभी भाई
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एक बहुत था लोभी भाई।
ज्यादा थी न उसकी कमाई।
उसने एक तरकीब लगाई।
उसने पाली मुर्गी एक।
जो देती थी,सोने का अंडा रोज एक।
उसके मन में लालच आया।
झटपट चाकू लाया एक।
मुर्गी काटी खून बहाया।
अंडा उसने एक न पाया।
अब रो-रो बहुत पछताया।
********************************************* सूरज का गोला
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बड़े सबेरे मुर्गा बोला।
चिड़ियों ने अपना मुँह खोला।
आसमान में चमकने लगा सूरज का गोला।
सब बोले दिन निकाला भाई।
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एक बहुत था लोभी भाई।
ज्यादा थी न उसकी कमाई।
उसने एक तरकीब लगाई।
उसने पाली मुर्गी एक।
जो देती थी,सोने का अंडा रोज एक।
उसके मन में लालच आया।
झटपट चाकू लाया एक।
मुर्गी काटी खून बहाया।
अंडा उसने एक न पाया।
अब रो-रो बहुत पछताया।
********************************************* सूरज का गोला
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बड़े सबेरे मुर्गा बोला।
चिड़ियों ने अपना मुँह खोला।
आसमान में चमकने लगा सूरज का गोला।
सब बोले दिन निकाला भाई।
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