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होली ( कविता)

 होली होली तो बहुत देखी थी, पर ऐसी न देखी थी। आज रंग-गुलाल नहीं, कोरोना का सन्नाटा है, हाथों में गुलाल नहीं, सेनीटाजर थमा है। गलियाँ सुनी, आँगन में पसरा सन्नाटा है। गुजिया बनाए कैसे घर में न बचा अब आटा है। मिलकर गले, जो कर लेते है मन हल्का,मिटा लेते थे दिलों की दूरियाँ,  आज दूरी ही बेहद जरूरी है। अरे! यह अब की कैसी होली है?

'कोरोना वायरस की आत्म कथा '

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                                     कोरोना की आत्म कथा     मार्च में मै पूरे एक वर्ष का हो गया हूँ, तो सोचा अपनी आत्म कथा लिख डालू । वैसे तो मैं किसी परिचय का मोहताज नहीं हूँ, फिर भी बता ही देता हूँ । मेरा नाम ' कोविड-19 उर्फ ' कोरोना वायरस ' है। मेरा जन्म स्थान 'चीन' है, और वैसे सारे विश्व में पाया जाता हूँ 😁। मैं बहुत आसानी से किसी भी इंसान को अपना शिकार बना लेता हूँ । मुझसे मिलना बडा़ ही आसान है। हाथ मिलाकर, खांस कर,  आप मुझे पा सकते है।  मेरे कुछ  शौक है जो आप सभी जानते ही है। जैसे- हर लापरवाह इंसान को अपना शिकार बनाना,और धीरे-धीरे उसमें समा कर और लोगों को अपना बनाना और फिर इस दुनिया से ही उठा लेना👿। दोस्त आपको मै अपनी एक और खासियत बता दूँ,  मै दिखाई नही देता मैं बहुत बडा़ जादूगर हूँ । अपना जादू हर किसी पर चलाना चाहता हूँ, और अपने इस मकसद मैं काफी हद तक कामयाब भी हुआ हूँ 👏👏। आप सभी ने मुझे अपना जादू दिखाने का पूरा अवसर दिया , आप बिना मास्क के, बिना स...