होली ( कविता)

 होली

होली तो बहुत देखी थी, पर ऐसी न देखी थी।

आज रंग-गुलाल नहीं, कोरोना का सन्नाटा है, हाथों में गुलाल नहीं, सेनीटाजर थमा है।

गलियाँ सुनी, आँगन में पसरा सन्नाटा है।

गुजिया बनाए कैसे घर में न बचा अब आटा है।

मिलकर गले, जो कर लेते है मन हल्का,मिटा लेते थे दिलों की दूरियाँ, 

आज दूरी ही बेहद जरूरी है।

अरे! यह अब की कैसी होली है?

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